Monday, May 21, 2012

जज़्बात -०३

जज़्बात -०३

गर्मी की छुट्टियाँ ऐसे ही निकल रही है,,,,, जब कुछ काम न हो तो मई बीमार पड़ने लगता हूँ और वही हो भी रहा है. बिन काम, के थकावट है और थकान कम होने का नाम भी नहीं ले रही इस बार तो लगता है की डॉक्टर की शरण में जाना ही पड़ेगा.
कल ,मेरी राशी से बात हुयी वो टिट फॉर तित करने में लगी हुयी है,अब ओ मुझसे जून में बात करेगी. मैंने कहा की अपने घर के प्रोग्राम में इतना व्यस्त रहने कया क्या मतलब की ५ मिनट भी न निकला जा सके. हर उसने अपने मन की बात कही. मैंने सर इतना ही कहा की जब रोज बात होती है तो ठीक यदि १५ दिनों की बाद बात करोगी तब तो होगया... कहानी ख़त्म. वैसे भी मन नहीं लगता है. इन ४ दिनों के बात न करने पे/ तो १५दिन कैसे गुजरेगे.. पर उसका रेस्पोंस कुछ खास नहीं था.उसने हम्म कह कर सर इतना कहा की मेरे पास अभी टाइम नहीं है. बाद में देखते है. मैंने अपनी बात सिर्फ इतना कहकर ख़त्म की प्लीस बात करते रहो. और मैंने कॉल ख़त्म कर दी,
पर मुझे नहीं लगता की वो बात करेगी जिद्दी किस्म की है. ठान लिया तो फिर कुछ भी हो जाये तो भी बात नहीं करेगी.
  अब मुझे अपनी स्कूल की याद आरही है. मै मैहर जाना चाहता
हूँ . अब यहाँ मन नहीं लगता है. पत्रिका का काम पूरा हो जाये तो मै मैहर चला जुगा... यहाँ मै बोर हो रहा हूँ...वहाँ पे नए लोग नया स्कूल और नयी जगह.... है.. अप्रैल में उनके साथ २० दिन गुजरे और उन्हें अपना बनाया था. वहा पर पाण्डेय सर और शिव सर से दोस्ती बहुत जल्दी हो गयी....थी... और आस पास के लोगो से भी दोस्ती अच्छी हो गयी थी. वहाँ के काम और यहाँ के परिस्थितियाँ बहुत अलग है,
यहाँ पे मै निस्फिक्र हो जाता हूँ. पर वहा उतना ही तेज काम करने वाला.... मेरे वहा के दोस्तों का फ़ोन आता रहता है.. पर मैयही कहता हूँ की छुट्टियों के बाद मिलते है,
मुझे आज भी यद् है. की अप्रैल में जब मै वहा कमरा नहीं लिया था तो तीन दिन पाण्डेय सर और शिव सर मेरे साथ कमर खोजे थे. और वहा सिफत होने के बाद वो सब लोगो ने मेरी मदद की. कभी कभी तो खाना भी उन्ही के यहाँ हो जाता था., सुबह और शाम को घूमना काम करना और आराम करना... न कोई टेंशन और न कोई परेशानी बस एक ही तरीके की सिस्टेमैटिक लाइफ ..............


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