Saturday, May 26, 2012

जज़्बात -०४

जज़्बात -०४
दो दिन पहले मेरी रश्मि से बात हुयी जब मैंने सिर्फ इतना मेसेज किया की मेरी तबियत सही नहीं है और मई सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ की बात करनी है भी या सिर्फ बहाना बना कर टाल दियाहै. तब उसने कॉल किया और बताया की यदि उसे बात बंद करनी होती तो वो सीधे बात बंद कर देती .
इस वक्त वो ज्यादा व्यस्त है. इसलिए वो ज्यादा वक्त अपनी फॅमिली के लिए दे रही है, क्योकि उसके यहाँ एक प्रोग्राम है. उसके बाद जब भी उसे वक्त मिलेगा वो बात करेगी . उसके बाद उसने फ़ोनरख दिया. उसे बहुत काम थे,
पर मेरा मन नहीं मानता है,लगता ही नहीं है कही, काम करने का मन ही नहीं होता है, सिर्फ ये लगा रहता है की किसी तरह उससे बात हो जाये. ये संभव नहीं है, लगातार इन्तजार अखरने लगता है. मन नहीं लगता है, सिरफ वाही जिंदगी जी रहे है,. मैगज़ीन का काम भी लगभग पूरा होने की कगार में है,उसके बाद लगता है की मै मैहर निकल जाऊं .अब यहाँ मन नहीं लगता है, बात करने वाला ही कोई नहीं है, अकेले खामोश होकर चुप रहने का मन करना है. पर कब तक चुप रहूँ ..ये समझ में नहीं आता है,.
हकीकत तो यह है की यदि अपने सबसे नजदीकी शख्स से बात न हो तो फिर साडी दुनिया आप के साथ हो जाये तो भी सब बेगाना सा लगता है मै ये जानता हूँ की वो मेरी नहीं है. मेरी लाइफ में नहीं आसकती है फिर भी मेरा उससे इतना लगाव क्यों है. क्यों है, क्यों मै उसको भूल नहीं पाता हूँ. ये सिर्फ और सिर्फ मन की विवशता है , और कुछ नहीं .हम छह कर भी कुछ नहीं कर पते है, बेबस है दोस्तों और दोस्ती के सामने.

No comments:

Post a Comment